भारत रत्न पाने वाले भाजपा के शीर्ष नेता रहे लालकृष्ण आडवाणी ने 96 साल की उम्र में बहुत कुछ देखा है।
देश की आजादी देखी तो बंटवारे का दर्द भी सहा। रामलला के लिए आंदोलन किया तो मंदिर भी बनते देखा। 1927 में कराची में जन्मे आडवाणी बंटवारे के बाद अपना महल सरीखा घर छोड़कर आए थे।
लेकिन आज भी जिंदगी के शुरुआती 20 सालों की यादें उनके जेहन में हैं। कुछ साल पहले तो उन्होंने यहां तक कहा था कि दुख होता है कि जिस सिंध प्रांत में मेरा जन्म हुआ, वह भारत का हिस्सा नहीं है।
यही नहीं 2005 में जब वह पाकिस्तान गए तो कराची भी पहुंचे। वहां अपना वह घर भी देखा, जिसे बंटवारे में छोड़ आए थे।
आडवाणी अपने घर पहुंचे तो देखा कि उनकी स्टील की वह आलमारी, तीन कालीनें और बेड जस के तस रखे हैं। इन्हें देखकर उनकी आंखें भर आई थीं।
हालांकि उनका वह घर पहले जैसा नहीं था और वह दो मंजिला मकान अब 5 मंजिला इमारत में बदल गया था। कराची की पारसी कॉलोनी में रहने वाले आडवाणी का घर ‘लाल कॉटेज’ के नाम से जाना जाता था।
अब इसका नाम जेजे लग्जरी अपार्टमेंट्स हो गया है। इस इलाके के ज्यादातर पुराने घरों को गिरा दिया गया और अब यहां अपार्टमेंट बन गए हैं। रियल एस्टेट के नजरिए से उसकी बड़ी कीमत हो गई है।
लालकृष्ण आडवाणी का परिवार जिस घर को छोड़कर आया था, उसमें अब 5 मंजिलें हैं और कुल 39 अपार्टमेंट बन चुके हैं। हर मंजिल में 8 फ्लैट हैं और इसका मालिकाना हक मूल रूप से गुजरात के रहने वाले मेमन परिवार का है।
फिलहाल इसके मालिक इकबाल हुसैन जिवानी हैं। जिवानी के पिता गुजरात से आए थे और उन्होंने यह बंगला अब्दुल जलीस मोहम्मद से खरीदा था।
इन्हीं अब्दुल जलीस को यह इमारत आडवाणी के पिता किशनचंद धर्मदास आडवाणी ने 6 सितंबर, 1947 को बेच दी थी।
अब्दुल जलीस मूल रूप से अरब के थे और उन्होंने 1974 में यह इमारत जिवानी को दे दी थी और सऊदी अरब चले गए।
दिलचस्प बात है कि बैनामे में जो मुहर लगी थी, वह भारत सरकार की थी। इसकी वजह यह थी कि तब बंटवारा नया हुआ था और पाकिस्तान का सिस्टम डिवेलप नहीं हो पाया था।
जिवानी ने बताया कि उन्होंने जब खरीदा था तो इस बंगले में 6 बेडरूम में थे। एक छोटा सा गार्डन था और एक अलग से बंद कमरा था।
जिवानी ने 2005 में इस मकान के बारे में यह पूरी जानकारी दी थी, जब मीडिया लालकृष्ण आडवाणी के पैतृक घर को खोजते हुए पहुंचा था।
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