नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पूरे देश में हलचल है।
कांग्रेस, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल समेत कई राजनीतिक दल इसे लेकर चिंता जता रहे हैं। कुछ लोगों ने तो इसे मुसलमानों के खिलाफ बताते हुए एक बार फिर से भावनाएं भड़काने का प्रयास किया है।
लेकिन सरकार इस बार 2020 के मुकाबले संभलकर चल रही है। मोदी सरकार इस कानून को लेकर अब बार-बार पीड़ित हिंदुओं की बात कर रही है और NRC का कोई जिक्र नहीं किया जा रहा।
जिसे लेकर कहा जा रहा था कि CAA को NRC से जोड़ दिया जाएगा और जिन लोगों के पास वैध दस्तावेज नहीं होंगे, उन मुस्लिम, ईसाई समुदाय के लोगों को बाहर कर दिया जाएगा या उनके अधिकारों पर खतरा होगा।
ऐसी तमाम चर्चाओं को जवाब देने की कोशिश करते हुए सरकार अब NRC का कोई जिक्र नहीं कर रही। सरकार का मानना है कि यदि NRC का जिक्र नहीं किया जाएगा तो इससे मुस्लिमों का भय दूर होगा।
CAA के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के प्रताड़ित हिंदुओं को नागरिकता मिलेगी। इसके अलावा कई साल से एक चर्चा यह भी चलाई गई थी कि उन मुस्लिमों को इस कानून को NRC से जोड़कर बाहर कर दिया जाएगा, जिनके पास नागरिकता के वैध दस्तावेज नहीं होंगे।
ऐसे में इसका भारी विरोध हुआ था। दिल्ली के जामिया नगर में करीब एक साल तक सड़कें जाम रही थीं। इसके अलावा देश के कई हिस्सों में बड़े प्रदर्शन हुए थे।
दरअसल इस भ्रम की एक वजह होम मिनिस्टर अमित शाह का 2019 का बयान भी था। इसमें उन्होंने कह दिया था कि NRC और CAA को जोड़ दिया जाएगा। इसके बाद मुस्लिम समूहों और उनके समर्थकों ने आंदोलन शुरू कर दिया था। लेकिन अब सरकार का स्टैंड बदला हुआ दिख रहा है।
मंगलवार को हैदराबाद में अमित शाह ने कहा कि नए CAA कानून में किसी की नागरिकता वापस लेने का प्रावधान नहीं है। इसके अलावा सरकार के प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो ने भी अब लगातार कई बार पोस्ट की हैं, जिसमें कहा गया है कि भारतीय मुसलमानों को इस कानून से कोई खतरा नहीं होगा।
वहीं पीएम नरेंद्र मोदी तो दिसंबर 2019 में जब यह कानून पारित हुआ था, तब से ही दोहराते रहे हैं कि इससे किसी की नागरिकता खतरे में नहीं होगी।
उन्होंने दिसंबर, 2019 में ही एक रैली में कहा था कि NRC को हमारी सरकार नहीं लाई है। इसे असम में कांग्रेस की सरकार ही लेकर आई थी। यही नहीं उन्होंने कहा था कि किसी की नागरिकता छिनने की बात करना बच्चों वाली हरकत है।
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